हरिद्वार – देवसंस्कृति विश्वविद्यालय एवं गायत्री तीर्थ शांतिकुंज परिसर में सृष्टि के प्रथम अभियंता एवं सृजनशीलता के देवता भगवान विश्वकर्मा जी की जयंती उल्लासपूर्वक और श्रद्धा के साथ मनाई गई। कार्यक्रम में रचनात्मकता एवं उद्यमशीलता के प्रतीक भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना की गई, जिसमें पुस्तक, पैमाना, जलपात्र जैसे सृजन के अनिवार्य उपकरणों को उनके प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।

आयोजन के दौरान भगवान विश्वकर्मा की जीवनशैली, उनके आदर्शों और समाज में उनके योगदान को स्मरण किया गया। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के विद्यार्थी, आचार्यगण और शांतिकुंज के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भागीदारी की। शांतिकुंज व्यवस्थापक श्री योगेन्द्र गिरी जी सहित अन्य वरिष्ठ जनों ने भी अपने भाव व्यक्त किए एवं सम्पूर्ण समाज के नवनिर्माण की प्रार्थना की।

इस अवसर पर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने अपने संदेश में कहा कि भगवान विश्वकर्मा का आदर्श यही है कि परिश्रम, रचना और नवाचार को ही ईश्वर की सच्ची पूजा माना जाए। वे हमें यह प्रेरणा देते हैं कि निर्माण केवल भौतिक नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भी होना चाहिए।

इस आयोजन के माध्यम से विश्वविद्यालय और शांतिकुंज परिवार ने सृजनशीलता, समर्पण एवं नवाचार के प्रति अपनी अटूट निष्ठा और प्रतिबद्धता को दोहराया। पूजन के दौरान डॉ वंदना श्रीवास्तव, डॉ शिवानंद साहू, डॉ अलका मिश्रा आदि उपस्थित रहे।

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