मनोज श्रीवास्तव जी के कलाम से ..
देहरादून – शक्ति होते हुए भी जीवन में सफलता और संतुष्टि नही मिलती है। क्यांकि हम अपने को मास्टर सागर नही समझते हैं। सागर अखण्ड, अचल और अटल होता है। सागर की विशेषता दो सक्तियां सदैव देखने में आयेंगी एक समाने की शक्ति और सामना करने की शक्ति। एैसे व्यक्ति लहरों द्वारा सामना करने की शक्ति रखते हैं और हर वस्तु व व्यक्ति को स्वयं में समा लेते हैं।
सामना करने की शक्ति और सहन करने की शक्ति को चेक करना है कि कहां तक यह शक्तियां मझमें आ चुकी हैं और किस परसंटेज में आइ हैं।
शक्तियां होते हुए भी कभी-कभी ही सफलता का अनुभव करते हैं।
पुरूषार्थ करते हुए भी कभी-कभी प्रत्यक्ष फल के रूप में अनुभव करते हैं। सर्व नियमों का पालन करते हैं फिर भी सदा हर्षित रहने का अनुभव नही करते। मेहनत बहुत करते हैं लेकिन फल का अनुभव कम करत हैं। माया को दासी बनाते हैं फिर भी कभी कभी उदासी का भी अनुभव करते हैं। ज्ञान भी है, नियमों का पालन भी करते हैं लेकिन स्वयं से कनफ्यूज हो जाते हैं।
प्राप्त हुयी शक्तियों को व ज्ञान के प्वांटस को जिस समय जिस रीति से कार्य में लगाना चाहिए, उस समय उस निती से यूज नही करते हैं। प्रीति है लेकिन प्रीति के साथ रीति नही आती तब अमूल्य वस्तु भी साधारण प्राप्ति का आधार बन जाती है। जैसे कोई कितना भी बड़ा यत्र व मूल्यवान वस्तु हो यदि उसको यूज करने की सही रीति नही आती तब उससे जो प्राप्ति होनी चाहिए वह नही होती है।
सही रीति है निर्णय करने की शक्ति। निर्णय करने की शक्ति न होने के कारण जहां समाने की शक्ति यूज करनी चाहिए वहां सामना करने की शक्ति यूज कर लते है। जहां समेटने की शक्ति यूज करनी चाहिए वहां विस्तार करने की शक्ति यूज कर लेते हैं। इसके परिणामस्वरूप जो संकल्प सफलता का होता है उसके अनुरूप सफलता नही मिलती है।
निर्णय शक्ति तेज करने की विशेष विधि है। निर्णय शक्ति बढ़ाने के लिए स्व स्थिति में स्थित रहना होगा। स्व स्थिति ही श्रेष्ठ स्थिति है। श्रेष्ठता में ही स्पष्टता है। यदि श्रेष्ठ धारण नही होगी तब स्पष्टता भी नही होगी। यही उलझन बुद्धी को स्वच्छ नही होने देती है। स्वच्छता ही श्रेष्ठता है।
चाहे ज्ञान हो चाहे शक्तियां हो उसे समय के अनुरूप लगाना चाहिए। अच्छी बातें, अच्छी चीजें समझकर समा लेना चाहिए। अर्थात बुद्धी की तिजोरी में नही रखना चाहिए। सिर्फ बैंक बैलेंस बनाकर नही रखना चाहिए। जितना यूज करगें उतना ही महादानी कहलाएंगे देने में ही लेना समाया है। बार-बार ज्ञान को यूज करने से जैसा समय वैसा स्वरूप बना लेते हैं और जिस समय जो शक्ति यूज करनी चाहिए वह शक्ति यूज कर लेते हैं। इससे हम समय पर धोखा खाने से बच जाते हैं। धोखा खाने से बचना अर्थात दुख से बचना।