देहरादून – उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में करीब एक साल का वक़्त बचा है, यही वजह है कि बीजेपी को हर मोर्चे पर घरने की जुगत में तमाम विपक्षी दल जुटे हैं। कांग्रेस किसानों, बेरोजगारों, महंगाई और भ्रस्टाचार पर सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है तो वहीं आम आदमी पार्टी भी इस बार 2022 विधानसभा लड़ने का ऐलान कर चुकी है, आप दिल्ली के तर्ज पर प्रदेश की स्वास्थ्य और शिक्षा की तुलनात्मत अध्यन करके बीजेपी को घेर रही है। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया ने प्रदेश सरकार के मंत्री को खुले में बहस की चुनौती देकर यह साफ कर दिया है कि आप मौजूदा सरकार के खिलाफ आक्रामक रणनीति के साथ चुनाव में मैदान उतरेगी। वहीं मौजूदा सरकार के साथ आम आदमी पार्टी कांग्रेस पर भी प्रदेश की अनदेखी का आरोप लगा रही है।

वहीं बसपा सुप्रीमों बहन मायावती ने भी साफ कह दिया है कि वह अकेले ही यूपी और उत्तराखंड में हाथी को आगे बढ़ाएगी। उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में बसपा का प्रभाव शुरू से रहा है लेकिन पार्टी में नेताओं के बर्चस्व की लड़ाई का खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा है। उत्तराखंड गठन के बाद से अब तक प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस ने रोटेशन से सरकार बनाई है। आम आदमी पार्टी दिल्ली मॉडल के सहारे उत्तराखंड में पैर जमाने की जुगत में है। बीजेपी सत्ता में है तो तमाम विपक्षी दल कांग्रेस, बीएसपी, आप और अन्य दलों के निशाने पर है। प्रदेश में बीजेपी को अपनी सरकार बचानी है लिहाजा बीजेपी प्रदेश के विकास कामों के साथ मोदी सरकार की उपलब्धियों के सहारे विपक्ष पर हमला वर है। बीजेपी भले ही यह दिखाने की कोशिश करे कि आगामी विधानसभा चुनाव में वह सब पर भारी है लेकिन बीजेपी के लिए प्रदेश में अब भी बड़ी चुनौती कांग्रेस है। हालांकि कांग्रेस में अब भी अंदुरुनी खींचतान है। उसके बावजूद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, नेता प्रतिपक्ष इन्द्रा हिर्देश और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ऐसे नेता हैं जिनके पीछे अब भी कांग्रेस कैडरों की बड़ी तादाद है। भले ही भाजपा हरीश रावत को 2017 का फ्लॉप हीरो बता रही हो। लेकिन सचाई बीजेपी भी भलीभांति जानती है, बीजेपी से मुकाबले के साथ ही हरीश रावत ने 2017 विधानसभा चुनाव से पहले कई चुनौतियों का भी सामना किया। कांग्रेस में हुई बड़ी टूट, तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय से मतभेद, पार्टी की अंदरुनी राजनीति, कुछ सीटों पर रावत के मनमुताबिक मज़बूत प्रतियाशियों की अनदेखी और स्टिंग प्रकरण ने हरीश रावत के चुनावी गणित को बिगाड़ दिया। परिणाम स्वरूप हरीश रावत न तो पार्टी को बचा पाए और न ही अपनी दोनों विधानसभा सीटें। उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई। और बीजेपी ने अब तक कि सबसे बड़ी जीत हासिल करते हुए 57 सीटों पर कमल खिलाया। यही वजह है कि बीजेपी हरीश रावत पर निशाना साधते हुए उन्हें फ्लॉप हीरो बता रही है।

हालांकि हरीश रावत 2017 के बाद से प्रदेश की शियासत पर लगातार अपनी नज़रें बनाये हुए हैं, रावत इन दिनों प्रदेश के हर छोटे बड़े मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रख रहे हैं। यही वजह है कि हरीश रावत बीजेपी के हमले पर बड़ी सादगी से पलटवार कर रहे हैं, हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर लिखा है याद रहे हीरो और फ्लॉप हीरो बनाने वाली जनता जनार्दन ही है। मेरे हाथ में कर्म था, यदि आपको प्रिय लगने वाले शब्द में कहूँ तो इस फ्लॉप हीरो ने उत्तराखंड के विकास को फ्लॉप नहीं होने दिया। हरीश रावत ने अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को बताने के साथ ही बीजेपी सरकार के कार्यकाल पर भी निशाना साध रहे हैं।

विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं रह गया है, यही वजह है कि हरीश रावत अपने केंद्रीय नेतृत्व के हर फ़ैसले को मानने को तैयार हैं, हरीश रावत कह चुके हैं पार्टी जिसे चाहे 2022 का चेहरा बनाये वह उसके साथ खड़े रहेंगे। अब देखना है क्या कांग्रेस चुनाव से पहले कोई चेहरा आगे करती है या नहीं ..

चुनाव नजदीक है ऐसे में तमाम राजनीतिक दल एक दूसरे पर हमले का कोई मौका नहीं गवाना चाहते हैं। यहीं वजह है कि प्रदेश की राजनीति में नेताओं की बयान बाज़ी तेज़ हो चली है, बयान के सहारे आरोप प्रत्यारोप और एक दूसरे को घेरने की शियासत परवान चढ़ रहा है। बीजेपी के साथ कांग्रेस और आप के बड़े नेताओं का प्रदेश में दौरा हो रहा है, ताकि चुनावी रणनीति फ़ीट की जा सके। लेकिन सचाई यहीं है कि संगठनात्मक रूप से कांग्रेस प्रदेश में बीजेपी से कमज़ोर है। जबकि आप के पास प्रदेश में अब तक कोई भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसको आगे रख कर प्रदेश के चुनावी गणित को बनाया या बिगाड़ा जा सके। जबकि बसपा अपने पुराने चेहरों को फिर से पार्टी में लाकर संगठन को मजबूत करने में जुटी है। वर्तमान सरकार के खिलाफ सिर्फ बयान बाज़ी से चुनाव परिणाम प्रभावित नहीं किये जा सकते हैं। बीजेपी के पास प्रधानमंत्री के रूप में एक ऐसा चेहरा है जो किसी भी गणित को बनाने बिगाड़ने की क्षमता रखता है। हाल ही में बिहार चुनाव के परिणामों ने यह साबित भी किया है। अब देखना है उत्तराखंड में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और बहन मायाबती कैसे मोदी के इस तिलिस्म में तोड़ने में कामयाब होते हैं।

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