बीजेपी शिवसेना लंबे वक्त से न सिर्फ एक दूसरे के सहयोगी रहे बल्कि राजनीति की पगडंडी पर दोनों की विचारधारा भी कमोबेश एक ही रही है। लेकिन महाराष्ट्र में 5 साल बीजेपी के साथ सत्ता में रही शिवसेना को विधानसभा चुनाव के बाद न जाने कौन सा भ्रम हो गया कि बीजेपी इस बार कम सीटें मिली है (गौरतलब है कि बीजेपी को 2014 में 122 सीटें मिली थी जबकि इस बार 105 सीटें), इसलिये मुख्यमंत्री उनका होना चाहिये। जबकि शिवसेना को भी पूर्व के 63 सीटों की अपेक्षा इस बार 56 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।

शायद संजय राउत सीएम की कुर्सी की धुन में यह भूल गए कि बाला साहब ठाकरे ने कभी सत्ता के लिये अपने सिद्धांतों से समझौता नही किया। और बाला साहब ठाकरे की इसी शैली ने उनको महाराष्ट्र का सबसे शक्तिशाली नेता के तौर पर पहचान दिलाई।

वक़्त का पहिया देखिये बड़े से बड़े नेता बाला साहब ठाकरे से मिलने उनके घर मातोश्री जाते थे। और अब विरासत संभाल रहे उनके सुपुत्र उद्धव ठाकरे कुर्सी के लिये सिद्धान्तों को भी टांग दिया और समर्थन के लिये मातोश्री से निकल कर होटलों के चक्कर भी लगाये। लेकिन न खुदा ही मिला न विसाले सनम।

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