मनोज श्रीवास्तव जी कलम से ..

किसी भी नदी की धारा में दो बार स्नान करना असंभव है। क्योंकि प्रत्येक समय नदी की धारा बदलती रहती है। अतः उसी धारा में स्नान करना संभव नहीं है। कोई भी परिस्थिति अधिक समय तक नहीं बनी रहती है। परिस्थिति प्रत्येक क्षण अपना रूप बदल देती है। आध्यात्म में विचारों की शक्ति के संबंध में मान्यता है कि कोई एक विचार सत्रह सेंकेंड तक एक बिंदु पर स्थिर नहीं रहता है। जितना देर तक कोई विचार बना रहेगा उतना ही उस विचार के वास्तविकता में बदलने की संभावना बढ़ती जाती है। सत्रह सेकेंड के बाद वह विचार पूर्ण रूप से यर्थाथ वास्तविक रूप में हमारे सामने आती है।

निगेटिव थाट की गति और आवृत्ति पाजिटिव थाट की तुलना में बहुत अधिक होती है। अर्थात पाजिटिव थाट स्लो और शांत रूप में चलता है जबकि निगेटिव थाट बहुत तीव्र और अशांत चलता है। इसलिए निगेटिव थाट पर अत्यधिक चिंतन करने से उसके वास्तविकता में बदलने की संभावना अधिक होती है।इसलिए थाट के कंट्रोलिंग पावर को रखना जरूरी होता है इसमें राजयोग हमारी मदद करता है। थाट को चेक करके चेंज कर लेना होता है। चेंज करने के लिए परिवर्तन करने की शक्ति और मानसिक शक्ति की आवश्यकता होती है इसमें भी राज योग हमारी मदद करता है।

इस चुनौती से निपटने के लिये हमें दिल और दिमाग दोनों में संतुलन रखते हुए दोनों में ही स्थिरता रखनी होगी। दिल और दिमाग अर्थात आंतरिक स्थिरता में राज योग मदद कर सकता है। राज योग केवल योग ही नहीं है बल्कि इसमें ज्ञान के रूप में एक अलग कंपोनेंट जुड़ा हुआ है। ज्ञान का अर्थ है अपने विरूद्ध होने वाली परिस्थिति को तर्क व समझ द्वारा अपने अनुकूल कर लेना। अर्थात आपदा को अवसर में बदल लेना। ज्ञान के प्रयोग से मन में चलने वाले क्या, क्यों, कैसे का उत्तर मिलकर समाधान मिल जाता है। और परिस्थितियां हमारे अनुकूल बनकर शक्ति के रूप में मदद करने लगती है।

साइंस की पॉवर का प्रयोग के अंतर्गत कारण से होकर फिर समाधान पर फोकस किया जाता है जबकि साइलेन्स की पॉवर के अंतर्गत बिना कारण जाने सीधे समाधान पर फोकस कर के समाधान प्राप्त कर लेते है। वास्तव में जीवन मे अनेक समस्या है जिसका कोई कारण ही नही पता चल पाता है इसके कारण विज्ञान इन समस्याओं का समाधान नही कर पाता है, जबकि साइलेन्स की पॉवर अपनी इंटयूटिव पॉवर अंतर्ज्ञान से सीधे समाधान दे देता है।

साइंस की पॉवर सभी समस्याओं का समाधान नही दे सकता है क्योकि आधुनिक काल की अधिकांश समस्याएं मानसिक है। कहा जाता है कि 80 प्रतिशत रोग भी साइकोसोमेटिक, मानसिक है। इसलिये इन समस्याओं का समाधान साइंस की आधार भूमि भौतिक स्तर पर नही मिल सकता है। यह समाधान केवल और केवल साइलेन्स की पॉवर दे सकता है। साइलेन्स की पॉवर मनसिक स्तर के साथ भौतिक स्तर का भी समाधान दे देता है।

अनिश्चित वातावरण के समय में अपने भीतर स्थिरता लाना एक बड़ी चुनौती है। बाह्य स्थिरता से अधिक आंतरिक स्थिरता महत्वपूर्ण होती है। आंतरिक स्थिरता से बाह्य स्थिरता स्वतः आ जाती है। आज बाह्य परिस्थिति के रूप में अर्थ व्यवस्था, प्रकृति, हैल्थ और जॉब में अस्थिरता हमारे मानसिक विचलन का कारण बन रहा है।
हम समस्या पर फोकस न रखकर समाधान पर फोकस रखें तब हमारी समय और ऊर्जा दोनों का बचत होगा। भूतकाल की घटना के पोस्टमाटर्म पर समय और ऊर्जा व्यर्थ करने से अधिक अच्छा है समाधान पर समय और ऊर्जा को लगाया जाए। क्योंकि हम अपने जीवन में होने वाली घटनाओं का अधिकांश कारण पूरा जीवन पूर्ण करने के बाद भी नहीं जान पाते हैं। इसलिए कारणों में उलझने के बजाय निवारण स्वरूप बनना चाहिए। कारण के बजाय निवारण पर फोकस रखना चाहिए।

समाधान पर फोकस करने का अर्थ है भूतकाल और भविष्य काल के दबाव और चिंता से मुक्त होकर वर्तमान पर फोकस रखना है। वर्तमान हमारी स्व स्थिति का रूप है जबकि भूतकाल और भविष्य काल का दबाव विपरीत परस्थिति का रूप है। परिस्थ्ति हमें पीछे धकेलती है जबकि स्व स्थिति हमें आगे ले जाती है। इसलिए जो हुआ है उसे ईमानदारी पूर्वक स्वीकार कर लें और परिस्थिति को जो है, जैसे है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लें। समय और परिस्थिति से युद्ध न करें।

समय, परिस्थिति और कारण से युद्ध करने पर हमारे अंदर नकारात्मकता बढ़ेगी। इसके परिणाम स्वरूप नकारात्मक वातावरण में हमारे लिये समाधान खोजना मुश्किल होगा। जीवन में एक तरफ परिस्थिति खड़ी है दूसरी तरफ हम खड़े हैं जब हम अंदर निगेटिव सोचते हैं तब वह परिस्थिति हमारे लिये समस्या बन जाती है। इसके प्रभाव से हम हमेशा रोते रहते है। कि यह समस्या हमारे जीवन में क्यों आई, पड़ोसी के पास यह समस्या क्यों नहीं है। लेकिन जब हम इसी परिस्थिति को चुनौती के रूप में लेते हैं तब वह परिस्थिति हमारे लिए अवसर में बदल जाती है।

सफलता, असफलता जीवन का अनिवार्य अंग है। सफलतम व्यक्ति के भी जीवन में असफलता के अनेक क्षण आते हैं। लेकिन सफल व्यक्ति असफलता को चैलेंज के रूप में स्वीकार करके पुनः खेल में कमबैक, वापसी करता है। इसके लिए मानसिक मजबूती जरूरी है। इस कार्य में राजयोग हमारी मदद करता है और विपरीत परिस्थिति को, आपदा को अवसर में बदल लेता है।

जब परिस्थिति आती है तब हमारी दिल चलता है अथवा दिमाग चलता है लेकिन राजयोग के प्रयोग से हमें दिल और दिमाग, भावना और विवेक दोनों के संतुलित उपयोग करने की शक्ति मिल जाती है। परिस्थिति में धैर्य रखना, हिम्मत रखना राजयोग के प्रमुख ज्ञान सिद्धांत हैं।

मनोज श्रीवास्तव

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