मनोज श्रीवास्तव जी की कलम से ..

देहरादून – मैं कौन हूँ ? इन्हीं तीन शब्दों में सम्पूर्ण विश्व का सम्पूर्ण ज्ञान समाया है। यह तीन शब्द ही हमारे खुशी के खजाने की, ज्ञान धन खजाने की और समय धन खजाने की चाबी है। स्वमान अर्थात सेल्फ रिस्पेक्ट में रहने पर यह चाबी हमें स्वतः मिल जाती है। स्वमान में स्थित रहना हमारे लिये गिफ्ट के समान है। मिले हुए गिफ्ट को यूज करने अथवा काम में लगाने से सर्व खजानों से सम्पन्न हो जाते हैं। सर्व खजानों से सम्पन्न होकर आत्मा के दिल के खुशी की उमंगों के मुख से, यही आवाज निकलती है ‘‘वाह रे मैं’’। यहाँ, वाह रे मैं शब्द स्वमान के हैं न कि देह अभिमान के हैं, अर्थात यह शब्द सेल्फ रिस्पेक्ट के हैं न कि ईगो के हैं।

मैं कौन हूँ ? इसको जानने की चाबी स्वमान है, इस चाबी को लगाना नहीं आता या फिर रखना नहीं आता अर्थात इस ज्ञान को रटना तो आता है परंतु धारण करना नहीं आता है। इसलिये जब कभी परिस्थिति समस्या आती है तब स्वमान शब्द भूल कर हम अभिमान में चले जाते हैं। हम आत्मा को भूलकर शरीर को सबकुछ मान लेते हैं। इस चाबी को चुराने के लिये माया हमारे चारों चक्कर लगाती है। यदि एक सेकेंड के लिये हम आलस से लापरवाही में चूक जाएं तब माया चाबी चोरी कर लेती है। इसलिये सदा स्वमान के होश में रहें, देह अभिमान की बेहोशी में न रहें।

स्वमान या सेल्फ रिस्पेक्ट को जागृत करने का सर्वश्रेष्ठ समय प्रातः काल अमृत वेला है। प्रातः अमृत वेला उठकर स्वयं के प्रति यह पाठ पक्का करना चाहिए कि मैं मूलतः आत्मा हूँ, शरीर नहीं। हर समय हर जगह इस ज्ञान को यूज करना चाहिए, सिर्फ बैंक बैलेंस बनाकर नहीं रखना चाहिए। जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति होगी, श्रेष्ठ स्वमान वाले ही सर्वश्रेष्ठ बन सकते हैं।

मैं कौन हूँ ? अर्थात मैं जो हूँ, जैसा हूँ वैसा ही अपने को जानना, और जानने के बाद मानकर चलना ही स्वमान अथवा सेल्फ रिस्पेक्ट है। अपने स्वमान अर्थात सेल्फ रिस्पेक्ट को सदैव आगे रखने से देह अभिमान अर्थात ईगो नहीं आ सकता है।

स्वमान अर्थात सेल्फ रिस्पेक्ट में स्थित होना ही खुशी की चाबी है। स्वमान हमारे शक्ति और खुशी का खजाना है। स्वमान में रहने से स्वयं के प्रति स्वमान, औरों के प्रति स्व की भावना की स्थिति सहज बन जाती है। सहज रूप में स्थिति रहना और मेहनत से उस स्थिति में स्थित होना इसमें अंतर होता है। वर्तमान समय यह स्थिति सदा सहज और स्वतः बनी रहनी चाहिए।

अपने को चेक करें कि सदा और स्वतः वह स्थिति क्यों बनी नहीं रहती है। इसका मूल कारण यह है कि क्योंकि हम अपने स्वमान अर्थात सेल्फ रिस्पेक्ट में स्थित नहीं रहते हैं। स्वमान अर्थात सेल्फ रिस्पेक्ट को यदि अपने प्रैक्टिकल जीवन में धारण कर लिया जाए तब सर्व समस्यायें स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं, और हम हर विषय में सम्पूर्णता के स्तर को प्राप्त कर लेते हैं। 

स्वमान अथवा सेल्फ रिस्पेक्ट में स्थित रहने से सभी का मान और रिस्पेक्ट स्वतः मिल जाता है। स्वमान में स्थित होना ही जीवन की पहेली को हल करने का साधन है। हम आदि से लेकर अभी तक इसी पहेली को हल करने में लगे हैं कि मैं कौन हूँ ? जब मैं को मेरा समझ लेते हैं तब समस्या में फंस जाते हैं। मैं कौन हूँ ? अर्थात आत्मा की स्मृति के प्रति दृढ़ संकल्प होना चाहिए लेकिन हम आत्मा को भूलकर शरीर के प्रति दृढ़ संकल्प रख लेते हैं। अर्थात जहाँ नहीं विश्वास करना चाहिए उस पर विश्वास कर लेते हैं और जहाँ विश्वास करना चाहिए उसे छोड़ देते हैं। मैं कौन हूँ ? यह एक पजल है जिसको हल न कर पाने के कारण हम व्याकुल और भ्रमित हो जाते हैं। इसका प्रमुख कारण है कि मैं कौन हूँ इस पजल को सही विधि से हल नहीं कर पाते हैं। इसका प्रमुख कारण है हम स्वमान सेल्फ रिस्पेक्ट के आधार पर देह अभिमान अथवा ईगो में आ जाते हैं। इसके प्रभाव से अन्य के प्रति अभिमान और अहंकार की दृष्टि बन जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *