सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई निदेशक आलोक कुमार वर्मा की याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है. सुनवाई के दौरान आलोक वर्मा के वकील फली नरीमन ने दलील दी कि कमेटी की सिफारिश पर ही सीबीआई डायरेक्टर नियुक्त किया जाता है. डायरेक्टर का कार्यकाल न्यूनतम दो साल होता है. अगर इस दौरान असाधारण हालात में सीबीआई निदेशक का ट्रांसफर किया जाना है तो कमेटी की अनुमति लेनी होगी.
उन्होंने कहा कि ट्रांसफर में नियमों का पालन नहीं किया गया है. नरीमन ने कहा कि आलोक वर्मा की नियुक्ति 1 फरवरी 2017 को की गई थी. नियमानुसार उनका कार्यकाल पूरे दो साल तक है. अगर उनका ट्रांसफर ही करना था तो सेलेक्शन कमेटी करती.
कोर्ट में नरीमन ने सीवीसी का आदेश पढ़ते हुए कहा कि सीबीआई अधिकारी से सारी शक्तियां लेकर उनका ट्रांसफर कर दिया गया, जो नियमों के खिलाफ है. अगर सरकार को कुछ गलत लगता तो उसे पहले समिति में जाना चाहिए था. उनसे संपर्क करना चाहिए था.
नरीमन की दलील पर जज ने पूछा कि अगर सीबीआई डायरेक्ट को घूस लेते रंगे हाथ पकड़ लिया जाए तो क्या कार्रवाई करनी चाहिए. इस पर नरीमन ने कहा कि उन्हें फौरन कमेटी में जाना चाहिए.
मनीष सिन्हा की याचिका पर नरीमन ने पूछा कि एक मामला कोर्ट में दाखिल हुआ हो और सुनवाई के लिए नहीं आया हो तो क्या छपने पर कार्रवाई हो सकती है? इस पर कोर्ट ने कहा कि सुनवाई पर आने से पहले दाखिल हुई याचिका छापी जा सकती है. उस पर कोई प्रतिबंध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला है कि ये पब्लिश किए जा सकते हैं. भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी वर्मा ने छुट्टी पर भेजे जाने के केंद्र सरकार के निर्णय को चुनौती दी है.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ वर्मा के सीलबंद लिफाफे में दिए गए जवाब पर विचार कर सकती है. केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने वर्मा के खिलाफ प्रारंभिक जांच कर अपनी रिपोर्ट दी थी और वर्मा ने इसी का जवाब दिया है.
पीठ को आलोक वर्मा द्वारा सीलबंद लिफाफे में न्यायालय को सौंपे गए जवाब पर 20 नवंबर को विचार करना था किंतु उनके खिलाफ सीवीसी के निष्कर्ष कथित रूप से मीडिया में लीक होने और जांच एजेंसी के उपमहानिरीक्षक मनीष कुमार सिन्हा द्वारा एक अलग अर्जी में लगाए गए आरोप मीडिया में प्रकाशित होने पर न्यायालय ने कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए सुनवाई स्थगित कर दी थी.
पीठ द्वारा जांच एजेंसी के कार्यवाहक निदेशक एम नागेश्वर राव की रिपोर्ट पर भी विचार किए जाने की संभावना है. नागेश्वर राव ने 23 से 26 अक्टूबर के दौरान उनके द्वारा लिए गए फैसलों के बारे में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दाखिल की है.